बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें
अध्याय - 10
धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र एवं समानता
(Secularism, Democracy and Equality)
प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
उत्तर -
जनतन्त्र एक प्रकार से सम्मिलित जीवन के अनुभवों से भी सम्बन्धित है जिसमें जीवनयापन, समानता भ्रातृता और स्वतंत्रता के साथ होता है। प्रत्येक व्यक्ति समान है न कोई ऊँचा न नीचा न रंग का भेद, न जाति का भेद। अतः सभी को शिक्षा के लिये समान अधिकार है। यहाँ तक कहा जाता है कि जनतन्त्र में शिक्षा व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है। शिक्षा के क्षेत्र में जनतंत्र के अनुसार व्यक्तियों को समान सुविधा देना।
बोड महोदय - "एक ओर जनतांत्रिक आन्दोलन का अर्थ हुआ व्यक्ति की रुचियों और क्षमताओं के विकास द्वारा मुक्ति।"
शाब्दिक अर्थ - लोकतन्त्र को प्रजातन्त्र या जनतन्त्र के रूप में जाना जाता है। सामान्यतः जनतन्त्र दो शब्दों के योग से बना है जन तन्त्र अर्थात् जनता शासन या नियन्त्रण लोकतन्त्र अंग्रेजी भाषा के डेमोक्रेसी शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। ये शब्द लैटिन भाषा के शब्दों डेमास और केटिन के मेल से बनता है। जिसका क्रमशः अर्थ होता है जनता और शासन इस प्रकार डेमोक्रेसी का अर्थ हुआ जनता का शासन इससे स्पष्ट होता है कि लोकतन्त्र एक सामाजिक संगठन है।
संकुचित अर्थ - संकुचित अर्थ में जनतन्त्र का तात्पर्य जीवन के सभी क्षेत्रों में समाज के सभी सदस्यों को आजादी से निर्णय लेने की स्वतन्त्रता देना है जो उनके जीवन को व्यक्तिगत, सामाजिक, एवं सामूहिक रूप से प्रभावित करें।
व्यापक अर्थ - विस्तृत दृष्टिकोण के देखें तो लोकतन्त्र न केवल राजनैतिक अवधारणा को दर्शाता है वरन् समाज की एक जीवन शैली भी दर्शाता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को समाज की संरचनाओं और संस्थाओं में उसकी स्वतंत्र भागीदारी के संदर्भ में समानता का अधिकार होता है।
जनतन्त्र और शिक्षा - जनतन्त्र के कुछ आदर्श होते हैं जो उनके सदस्यों के कार्यों और विचारों में दिखाई देते हैं जिन्में हम क्रमबद्ध रूप में इस प्रकार देखेंगे -
1. प्रत्येक व्यक्तियों की स्वतन्त्रता, समानता और सामाजिक न्याय देना जिससे वह अपने व्यक्तित्व का पूर्णतया विकास कर सके।
2. जनतन्त्र में समान अधिकार और आपेक्षित उत्तरदायित्व भी होता है। सभी चीजों पर सभी लोगों का अधिकार है तथा उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व है I
3. मनाव व्यक्तित्व का आदर करना और उसे भौतिक पदार्थों से अधिक कीमती समझना, क्योंकि मानव ही जनतन्त्र का निर्माता और आधार है।
4. जनतन्त्र से धर्म को दूर रखना चाहिए जिससे साम्प्रदायिक संकीर्णता और कट्टरता तथा मत विरोध न हो।
5. सभी व्यक्तियों को स्वतन्त्र वातावरण में स्वतन्त्र ढंग से रहने एवं शिक्षा आदि के लिए सभी सुविधायें देना। इसमें किसी प्रकार भेदभाव न करना।
6. जनतन्त्र हमें आत्म शासन करना सिखाता है जिससे सभी लोगों में सामाजिक हित की भावना जागती है।
7. जनतंत्र भ्रातृत्व के कारण शान्तिप्रिय जीवन को प्रोत्साहन देता है युद्धों से दूर रहता है जिससे आपस में संघर्ष दूर रहे और समाज की प्रगति में किसी प्रकार का अवरोध न हो।
8. जनतन्त्र और जीवन दोनों सम्बन्धित है जनतंत्र में जीवन में बुद्धि या मस्तिष्क को अपने कर्म करने की स्वतन्त्रता होती है।
9. जनतन्त्र विशाल दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है जिससे विचारों में सहिष्णुता एवं सहयोग की भावना आती है।
जनतन्त्र की सफलता शिक्षा पर निर्भर करती है। शिक्षा तब तक सफल नहीं होती जब तक वह जीवन में उपयोगी न हो और जनतन्त्र के लिये आवश्यक गुण उत्पन्न न कर सके। शिक्षा जन तन्त्र में समाजीकरण की प्रक्रिया तथा समाज में पुनः निर्माण की प्रक्रिया होती है जनतन्त्र में शिक्षा वह साधन है जिससे व्यक्ति समाज के जीवन में सक्रिय भाग लेने में समर्थ होता है। समाज का निर्माण व्यक्ति और व्यक्ति निर्माण शिक्षा करती है। शिक्षा इसलिए जनतन्त्र में स्वतन्त्र विचारक सामाजिक कल्याण की भावना से युक्त दूसरों का ख्याल करने वाला समस्याओं पर विचार करके तुरन्त निर्माण लेने वाला सहिष्णु, सच्चरित्र एवं अच्छी आदतों वाला, रूढ़ियों का विरोध करने वाला, समाज में परिवर्तन करने वाला तथा समाज को प्रगतिशील नागरिक तैयार करती है।
शिक्षा वास्तव में समस्याओं को जीवन में हल करने का माध्यम है। जिससे प्रत्येक नागरिक अपने आश्रितों का पालन-पोषण कर सके। जनतन्त्र और शिक्षा एक-दूसरे के लिये आवश्यक है। अतः दोनों में पर्याप्त सभ्यता दिखलाई पड़ती है। अपने अत्यन्त स्पष्ट और निश्चित रूप में जनतांत्रिक शिक्षा का अर्थ है कि वह सामाजिक एवं राजनैतिक जो उसके लिये आधारस्वरूप है जिन्होंने एक जलवायु या सामाजिक वायुमण्डल उत्पन्न कर दिया है जिसमें एक समझौता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता की बराबर मात्रा में सर्वाधिक शिक्षा के लिए अवसर अपनी रुचि और प्रेरणा के साथ पाये। ऐसी विधि से शिक्षा प्रणाली का निर्माण किया जाये, ऐसी शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार एक ऐसे नागरिक के रूप में बढ़ने के लिए अवसर और सुविधायें देती हैं जिसमें उसके सभी अंगों का पूर्ण रूप से विकास होता है। ऐसे ही नागरिक कुशल सामाजिक गुण धारण करते हैं जिससे जनतांत्रिक भावना का विकास होता है।
जनतन्त्र के लिए शिक्षा की आवश्यकता - जनतन्त्र प्रजातन्त्र है। प्रजा अपने स्वतन्त्र मत द्वारा चुनाव का निर्माण करती है जिसके लिये बौद्धिक क्षमता, बौद्धिक स्वतन्त्रता और पर्याप्त निर्णय शक्ति की आवश्यकता है। यह सब शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है। अतः जनतांत्रिक के लिये शिक्षित समाज का होना अति आवश्यक है। जिससे कि लोग यह समझ सकें कि उनके द्वारा चुने हुये कौन -कौन से लोग उसका वास्तविक हित कर सकते हैं। जिससे व्यक्ति समाज और राष्ट्र सबका हित हो सके।
हुमायूँ कबीर के अनुसार - "यदि प्रजातन्त्र को सचमुच प्रभावशाली होना है और व्यक्ति को अपने पूर्ण विकास की गारण्टी करना है तो शिक्षा सार्वभौमिक एवं निःशुल्क होनी चाहिए। जनतन्त्र के लिय शिक्षा की आवश्यकता को निम्न बिन्दुओं में देखा जा सकता है -
1. शिक्षा के द्वारा व्यक्ति में बौद्धिक क्षमता, बौद्धिक स्वतन्त्रता, पर्याप्त निर्णय शक्ति का विकास होता है जो जनतन्त्र के विकास के लिए आवश्यक होता है।
2. लोकतन्त्रीय समाज के लोगों में शिक्षा द्वारा नागरिक में अच्छी आदतों का निर्माण किया जाना सम्भव है क्योंकि आदतें ही गरीबी या अमीरी, परिश्रम या आलस्य, अच्छे या बुरे कार्यों की नींव डालती है।
3. लोकतन्त्र में शिक्षा के द्वारा सामाजिक दृष्टिकोण का विकास किया जा सकता है जिससे मनुष्य में सामाजिक अवबोध, सामाजिक रुचियों और सामाजिक प्राणी बनने की भावना का विकास होता है।
4. लोकतन्त्र में शिक्षा के द्वारा बच्चों में नेतृत्व के गुणों को विकसित किया जा सकता है। ताकि वे भविष्य में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक नेतृत्व कर सकें।
5. लोकतन्त्र राष्ट्र में शिक्षा बच्चों में लोकतन्त्रिक मूल्यों का विकास करने में सहायक होती है जिससे बच्चों में सहनशीलता सेवा निःस्वार्थ नेतृत्व आत्म नियंत्रण व्यक्तित्व की गरिमा का आदर करना सीखते हैं।
6. लोकतंत्रीय राष्ट्र में धार्मिक सहिष्णुता का विकास शिक्षा के द्वारा किया जा सकता है।
जान डीवी के अनुसार - "जनतन्त्र में इस प्रकार की शिक्षा होनी चाहिए जिससे व्यक्तियों को सामाजिक सम्बन्ध और नियन्त्रण में व्यक्तिगत रुचि उत्पन्न हो और उनमें ऐसी आदतों का निर्माण हो जिससे अस्वस्थता पैदा हुये बिना सामाजिक परिवर्तन का होना सम्भव है।
डॉ. मुखर्जी के अनुसार - "यदि बालकों की शिक्षा राज्य के भावी कल्याण के आवश्यक है तो प्रौढ़ों की शिक्षा जनतन्त्र के वर्तमान अस्तित्व के लिये आवश्यक है।"
अन्त में कहा जा सकता है कि जनतन्त्र की सफलता का प्रमुख आधार शिक्षा है। जनतन्त्र में शिक्षा का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है यदि जनतन्त्र में शिक्षित व्यक्तियों का अभाव होता है तो अशिक्षित व्यक्तियों का एक ऐसा समूह वर्ग सत्तारूढ़ होता है जो अपने अधिकारों का दूसरे वर्गों पर गलत प्रयोग होता है। फलस्वरूप आरक्षित वर्ग उस सत्ताधारी वर्ग की इच्छाओं के अधीन हो जाता है जिससे जनतंत्र के लक्ष्य ही नष्ट हो जाते हैं। जनतन्त्र जनता का शासन हैं। इसलिए जनतन्त्र में जन शिक्षा पर विशेष स्थान दिया जाना चाहिए। जन शिक्षा के द्वारा सभी नागरिकों के लिए खुले होते हैं।
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- प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
- प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
- प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
- प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
- प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
- प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
- प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
- प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
- प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
- प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
- प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
- प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?